मैदानी क्षेत्रों हेतु सेब की उपयुक्त प्रजातियांः सफलता की ओर एक कदम
मैदानी क्षेत्रों हेतु सेब की उपयुक्त प्रजातियांः सफलता की ओर एक कदम

मैदानी क्षेत्रों में सेब की बागवानी हेतु विदेशी शोध संस्थानों द्वारा कुछ प्रजातियां विकसित की गई थी। किन्तु उनका भारत की उपोष्ण जलवायु में परीक्षण या मूल्यांकन नहीं होने के कारण इसके बारे में जागरूकता का अभी तक अभाव था। भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान ने सेब की फसल को मैदानी क्षेत्रों में लोकप्रिय बनाने हेतु संस्थान प्रक्षेत्र में मूल्यांकन किया। इसके अन्तर्गत सेब की कम शीतलन आवश्यकता वाली प्रजातियों, जिनकी पुष्पन हेतु शीतलन इकाइयों की आवश्यकता केवल 250- 300 घंटों की होती है, इस किस्म का परीक्षण एवं मूल्याकंन उपोष्ण जलवायु में किया गया। इस अध्ययन से प्राप्त परिणामों में यह भ्रांति टूट गई कि सेब की बागवानी उपोष्ण जलवायु क्षेत्रों में ही संभव हो सकता है। यह अध्ययन उपोष्ण क्षेत्रों में कृषि एवं बागवानी के विविधीकरण में नया विकल्प प्रदान करने की क्षमता भी रखता है।

कम शीतलन की आवश्यकता वाली प्रजातियों के नाम इस प्रकार है। अन्ना, डॉर्सेट गोल्डन, एचआर एमएन-99, इन शेमर, माइकल, बेबर्ली हिल्स, पार्लिन्स ब्यूटी, ट्रापिकल ब्यूटी, पेटेगिल, तम्मा आदि। संस्थान में अन्ना, डार्सेट गोल्डन एवं माइकल प्रजाति के पौधे पर 4 वर्षों के अध्ययन से प्राप्त अनुभव के आधार पर किया गया।

मैदानी क्षेत्रों हेतु सेब की उपयुक्त प्रजातियांः सफलता की ओर एक कदम  मैदानी क्षेत्रों हेतु सेब की उपयुक्त प्रजातियांः सफलता की ओर एक कदम

अन्नाः- यह सेब की दोहरी उद्देश्य वाली प्रजाति है जो गर्म जलवायु में अच्छी तरह से विकसित होती है तथा बहुत जल्दी पककर तैयार भी होती है। पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाली सेब की प्रजातियों को पुष्पन एवं फलन हेतु कम से कम 450- 500 घंटे की शीतलन इकाईयों की आवश्यकता होती है। इस प्रजाति के फल जून माह में परिपक्व हो जाता है। फलों के परिपक्व होने पर रंग का विकास पीली सतह पर लाल आभा के साथ होता है। फल देखने में गोल्डन डिलीशियस जैसे लगते हैं। यह शीघ्र एवं अधिक फलन वाली किस्म है। जून माह में सामान्य तापमान पर लगभग 7 दिनों तक इनका भण्डारण किया जाता है। वर्गीकरण के अनुसार अन्ना सेब एक स्वयं बांझ (सेल्फ स्टेराइल) प्रजाति है। अध्ययन के तृतीय वर्ष के दौरान परागण दाता किस्म डार्सेट गोल्डन के पौधे के पुष्पन के कारण अन्ना के वृक्षों पर फलन अधिक पाया गया। इसका तात्पर्य यह है कि अन्ना सेब की बागवानी करते समय परागण दाता प्रजाति का प्रावधान करना आवश्यक होता है।

डार्सेट गोल्डनः-डार्सेट गोल्डन भी सेब की ऐसी प्रजाति है जो कि गर्म क्षेत्रों के लिए विकसित की गई है। जहां शीत ऋतु में 250- 300 घंटो की शीतलन की सविधाएं उपलब्ध हो। अन्ना किस्म की सफल बागवानी में यदि उचित दूरियों पर 20 प्रतिशत पौधे डार्सेट गोल्डन प्रजाति के लगाए जाए जिससे पूरे बाग में उनके द्वारा उत्पन्न परागकण उपलब्ध हो सके तो अच्छे परिणाम आते हैं।

पौध रोपण हेतु तैयारियां एवं जानकारीः सर्वप्रथम सरकारी पौधशाला या राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त पौधशाला से पौधों का अग्रिम उपलब्धता  सुनिश्चित करवा लेना चाहिए। बागवानी करने वाले किसान को यह सलाह दी जाती है कि सेब की बागवानी के लिए आर्दश पी-एच मान 6- 7 है, मृदा में जलजमाव नहीं होना चाहिए साथ ही उचित जल निकास वाली मिटटी खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है। इन्हें सूर्य के प्रकाश की कम से कम 6 घंटे की आवश्यकता होती है। प्रति पौधा 15 कि.ग्रा. सड़ी गोबर की खाद का इस्तेमाल किया जा सकता है। सेब की प्रजातियों की चयनित प्रजातियों को वर्गाकार 5X5 या 6X6 मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए। पौध रोपण के समय यह ध्यान रखना आवश्यक रहता है कि मूलवृंत एवं साकुर के जोड़ के स्थान, जोकि एक गांठ के रूप में आसानी से दिखाई देता है, कभी भी भूमि में दबना नहीं चाहिए।

पादप वृद्धि, पुष्पन एवं फलनः नवम्बर से जनवरी तक पौधों की लगभग 60 प्रतिशत पत्तियां गिर जाती हैं। पत्तियों के गिरने पर किसान भाइयों को चिंता नहीं करनी चाहिए। यह इन पौधों को शीत ऋतु के समय न्यूनतम तापमान को सहने एवं अगले मौसम में पुष्पन लाने हेतु एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।

कीट एवं व्याधियांः हानिकारक कीटों में मुख्य रूप से अगस्त- सितम्बर में हेयर कैटर पिलर का प्रकोप होता है इसके बचाव हेतु डाइमेथोएट- 2 मिली लीटर की दर से तुरन्त छिड़काव करनी चाहिए। जुलाई के समय बरसात के साथ कुछ फलों में सड़न की समस्या दिखाई पड़ती है जिसके उपचार हेतु किसी भी सुरक्षित फफूंदीनाशक  कार्वेन्डाजिम या थियोफेनेट मिथाइल का 0.1 प्रतिशत की दर से छिड़काव करके किया जा सकता है। बेहतर तो यही होता है, कि बरसात के पूर्व ही फलों को तोड़ लिया जाए।

(स्रोतः भाकृअनुप-भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान, मोदीपुरम, मेरठ)

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